Menu
blogid : 17475 postid : 728583

विचार एक अनमोल रतन

सुविचार, सदविचार
सुविचार, सदविचार
  • 30 Posts
  • 7 Comments

विचार:-
कहने के लिए एक शब्द है। यह सभी व्यक्ति धारण किये हुए हैं। इसमें संस्कार, पोषण, कुपोषण, विकार, एवं बुद्धि-प्रखरता का महत्वपूर्ण स्थान है। जिस प्रकार किसी भी बीज को जबरजस्ती अंकुरण कर वृद्धि करके उचित फलों की अपेक्षा नहीं की जा सकती, अपितु उसे समयानुसार अंकुरण होने की स्वतत्रता, समुचित देखभाल और पोषण से निःसंदेह की जा सकती है। ठीक उसी प्रकार विचारों को भी किसी के ऊपर इसप्रकार थोपा नहीं जा सकता की वह इसी को धारण कर लेगा, अपितु किसी के हृदय में या सामूहिक रूप में इसे अंकुरित कर पोषण की आवश्यकता होती है। हमारे अनुसार विचारों की तीन कोटियाँ हैं।
१.विशुद्ध विचार
२. सदविचार
३. दुरविचार

खंडन
१. विशुद्ध विचार:-
विशुद्ध विचार का तात्पर्य यह है कि जिसमे किसी भी प्रकार की असुद्धता ना हो, यह प्रत्येक प्राणियों के लिए ही कल्याणकारी हो।
दूसरे शब्दों में आध्यात्मिक विचार ही विशुद्ध है।

२. सदविचार:-
सदविचार विशेषतः समाजहित या समाज कल्याण में पुर्णतः निहित होता है। अब चूँकि मानव समाज ही विचार कर सकता है, इसलिए आज की नैतिक दृष्टि जहाँ मानव-मात्र का कल्याण निहित हो उसे सदविचार कहती है।
चाहे वो अन्य जंतुओं को मार देने का विचार ही क्यूँ ना हो।

3. दुरविचार:-
किसी भी अवस्था में केवल स्वयं का कल्याण ही दुरविचार है। क्योंकि यह कभी भी शांति या संतोष नहीं प्रदान करता। जहाँ शांति और संतोष नहीं वहां एक क्षण के कल्याण की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसका उदय तब हो जाता है जब अहंकार और क्रोध को छोड़ प्रेम, मानवता तथा चैतन्यता की सत्ता शून्य पर पहुँच जाती है। और जिस बीज का अंकुरण हो जाता है यदि उसको काट ना दिया जाए तो वृद्धि निश्चित है।
*******

हमारे भगवान श्री कृष्ण के उपदेशानुसार व्यक्ति के अन्दर आवश्यकता सबकी है, और इन सबको उन्होंने सभी को प्रदान भी किया है। किन्तु इसका सदउपयोग करने के लिए कन्ट्रोलर और एक्सीलेटर नितांत आवश्यक है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहा जाता है। जो व्यक्ति को स्वयं प्राप्त करना पड़ता है। और ये गुरुओं द्वारा सम्भव है।

परन्तु आज तो यह गुरुओं के पास ही नहीं तो हमारे पास कहाँ से आ जाय।

श्वामी विवेकान्द जी ने भी एक बात कही थी कि जिस व्यक्ति को दो वक्त की रोटी के लिए दर दर भटकना पड़े वो खोज क्या करेगा। हमें ये बहुत जँचती है।

और मैं कहता हूँ जिनके वर्षों के रोटी की व्यवस्था जनता कर बैठती है, और वो तस्कर निकल जाँय तो जयघोष क्या करेंगे। और फिर समर्थन देने वाली जनता कहाँ जाय।

हमारा भारत जिस कारण दुनियाँ में जाना जाता है। भारत सरकार को उसपर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

हमारे भारत में आज के विचारक कहते हैं कि जीवन को कभी भी बँधे हुए नीयमों में जीने की आवश्यकता नहीं, इससे तो आदमी धीरे धीरे मुर्दा हो जाता है। बोध से जीयो सिद्धांतों से नहीं। मर्यादा बस एक ही हो कि सबकुछ होश में करो । बाकी सब मर्यादाएँ व्यर्थ हैं।
भारत सरकार भले ही ऐसे विचारकों को विचार प्रस्तुति के अनुमति देती हो! परन्तु मैं इसका विरोध करता हूँ, क्योंकि आज यही बोध ही बलात्कार, अनाचार आदि का कारण बन बैठा है।
इतना ही नहीं इनका कहना यह भी है कि जो भी करो होश में करो बाकी सब मर्यादाएँ व्यर्थ हैं। इस बात से हम और भी ज्यादा आहत हुए हैं कि आखिर ये होश क्या है?

कुछ भी बीकरने की स्वतंत्रता होश है
अथवा
मर्यादाओं सिद्धांतों का समुचित ज्ञान एवं ध्यान।

~~~~~~~~~अंगीरा प्रसाद मौर्या

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh